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मध्य प्रदेश का एक प्राचीन शहर और एक पवित्र स्थान, शिवपुरी को पहले सिपरी के नाम से जाना जाता था। इस जगह का इतिहास मुगल काल से है। शिवपुरी के घने जंगल एक समय में शाही शिकार के मैदान थे। समुद्र तल से 478 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह शहर सभी विदेशी आकर्षणों में से एक है, जो इसे पर्यटकों के लिए एक बहुत ही शांतिपूर्ण गंतव्य बनाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस शहर का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है। 1804 तक यह शहर कच्छवाहा राजपूतों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता था। उसके बाद यहाँ सिंधिया राजवंश द्वारा शासन किया गया। इसके अलावा शिवपुरी स्वतंत्रता संग्राम से भी महत्व रखता है क्योंकि यह वह स्थान है जहां महान स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे जी को फांसी दी गई थी। शिवपुरी के जंगलों में पहले मुगल सम्राटों के शिकार क्षेत्र थे।चाहे आप अवकाश या साहसिक दौरे पर हों, आप रोमांचकारी वन्यजीवन और ऐतिहासिक स्थानों के बीच यात्रा को पसंद करेंगे।
सन 1993 मे यहा ग्रुप केन्द्र की स्थापना की गई जहा वर्तमान मे सी०आई०ए०टी० स्कूल शिवपुरी मौजूद है । परंतु ग्रुप केंद्र हेतु जमीन की अनुपयुक्तता की वजह से सन 2004 मे इसे ग्वालियर मे स्थानांतरित किया गया, जहा अभी भी स्थित है । इसके पश्चात सन 2009 तक लगातार शिवपुरी मे इस जमीन का उपयोग नई बटालियन को विकसित करने हेतु किया गया । तथा सन 2009 मे प्रतिविद्रोहिता एवं आतंकवाद विरोधी स्कूल, केरिपुबल अस्तित्व मे आया । सी०आई०ए०टी० जो की केरिपुबल के प्रमुख ट्रेनिंग संस्थानो मे से एक है, बरोदी गाव के निकट , ए०बी० रोड जिला शिवपुरी (म.प्र) मे स्थित है तथा राष्ट्र की सेवा मे समर्पित है तथा बहादुर सिपाहियो को नक्सल जैसे खतरनाक बीमारी से लड़ने के लिए प्रशिक्षित करता है। यह संस्थान MHA Letter No.-II-27012-PF-III दिनांक 01/09/2009 तथा DIG (ORG) DTE Letter No.– O-IV-1/2008-Org (Aug) दिनांक 05/10/2009 के आदेश के अंतर्गत स्वीकृत किया गया । यह संस्थान 13/11/2009 से IGP Trg Dte Genl, CRPF के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत कार्य करना प्रारंभ हो गया । इसका क्षेत्रफल कुल 264.051 एकड़ है जो की चार विभिन्न कैम्प यथा– ए, बी, सी एवं डी के रूप मे विभाजितहै। कैम्प ए को प्रशासनिक / आंतरिक प्रशिक्षण तथा कैम्प सी को बाहरी प्रशिक्षण हेतु उपयोग किया जाता है तथा बी एवं डी कैम्प को आने वाले समय मे प्रसार के लिए सुरक्षित रखा गया है ।
इस संस्थान ने अपना पहला प्रशिक्षण कार्यक्रम ( सी०आ०ई०ए०टी) क्र.सं॰– 14 के रूप मे दिनांक 08/03/2010 से 20/04/2010 तक संचालित किया, जिसे बहुत सराहा गया। इसके पश्चात इस संस्थान ने पीछे मुड़ कर कभी नही देखा जौर विभिन्न प्रकार के कई पाठ्यक्रम लगातार सफलतापूर्वक चलाये है। समय के साथ, यह संस्थान ब्रिगेडियर उदय प्रताप सिंह (VSM), श्री पी॰एस॰ राजौरा , (PMG), पुलिस उप महानिरीक्षक, श्री ए०के०सिंह (PMG), पुलिस उप महानिरीक्षक, श्री आर० एस० चौहान, पुलिस उपमहानिरीक्षक, श्रीपी०के० पाण्डेय, पुलिस महानिरीक्षक, श्री आर०पी० पाण्डेय, पुलिस महानिरीक्षक, श्री मूल चन्द पंवार, (PMG), पुलिस महानिरीक्षक और श्री गिरीश कुमार, पुलिस महानिरीक्षक जैसे निष्ठावान दिग्गजो के सुयोग्य नेतृत्व में विकसित हुआ ।
नक्सलवाद जैसी चुनौतियों से लड़ने के लिए जवानो को शारीरिक मानसिक और नीतिगत रूप से योग्य बनाने हेतु समर्पित इस संस्थान की सेवाओं को संस्थान के भ्रमण के दौरान विभिन्न उच्चाधिकारियों द्वारा बार-बार सराहा गया है । सी०आई०ए०टी० स्कूल केरिपुबल, शिवपुरी, नक्सलविरोधी अभियान को संचालित करने हेतु, विशेष तरह के कौशल व केन्द्रित उन्मुखीकरण को प्रखर बनाता है। इसके अस्तित्व में आने के बहुत कम समय में ही यह संस्थान प्रशिक्षण के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सक्षम रहा है। नक्सलवाद चुनौती पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते हुए यह संस्थान सतत प्रयासो से प्रतिविद्रोहिता तथा आतंकवाद– विरोधी प्रशिक्षण के क्षेत्र मे "श्रेष्ठता के केंद्र” की प्रतिष्ठित उपाधि की ओर अग्रसर है ।
शिवपुरी पर्यटन केंद्र है। यहाँ पर दूर-दूर से पर्यटक सदैव आते रहते है। शिवपुरी पूरे वर्ष सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है लेकिन वर्षा ऋतु में पहली फुहारों के बाद यहां की प्रकृति में चार चाँद लग जाते हैं। सैलानियों के ठहरने के लिए मप्र पर्यटन विभाग की ओर से 'टूरिस्ट विलेज' की स्थापना की गई है। यह प्राकतिक कुण्ड " भदैया कुण्ड " के निकट स्थित है।
शिवपुरी में आगरा -बम्बई और झाँसी -शिवपुरी के मध्य माधव नेशनल पार्क स्थित है। इसका क्षेत्रफल 157.58 वर्ग किलोमीटर है। पार्क पूरे वर्ष सैलानियों के लिए खुला रहता है। चिंकारा, भारतीय चिकारे और चीतल की बड़ी संख्या में हैं। नीलगाय, सांभर, चौसिंगा, कृष्णमृग, स्लोथ रीछ, तेंदुए और साधारण लंगूर इस विशाल पार्क के अन्य निवासी हैं।
उन स्थानों में से एक है जहां प्राकृतिक झरनों में रोगनाशक शक्तियां होती है। यह कुंड एक गांव में स्थित है जो मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अंर्तगत आता है। यह जगह पर्यटकों के लिए सुरक्षित और साफ है, यहां आकर वह अच्छे होटलों में सुविधाजनक तरीके से ठहर सकते है। यह स्थल ग्वालियर से 112 किमी. की दूरी पर स्थित है जो भारत की सैर के दौरान एक खास स्थल है जहां दूर - दूर से सैलानी कुंड को देखने आते है। भादिया कुंड, एक प्राकृतिक झरने वाला सुंदर क्षेत्र है जो शिवपुरी से ज्यादा दूर नहीं है। हालांकि, शिवपुरी में पिकनिक क्षेत्रों की कमी नहीं है लेकिन फिर भी पर्यटक भादिया कुंड की ओर शांत वातावरण और प्रकृति के कई रंग देखने के लिए रूख करते है। भादिया कुंड के बारे में कहा जाता है कि इस प्राकृतिक पानी के स्त्रोत में काफी गुणकारी खनिज लवण है। प्राचीन मान्यताओं और कई चिकित्सीय गुणों के कारण यहां के पानी से स्नान करने को बेहतर उपचार माना जाता है। माना जाता है कि यदि किसी को त्वचा सम्बंधी रोग हो तो इस जल में स्नान करने से लाभ मिलता है। कुंड का पानी चिकित्सीय शक्तियों से भरपुर माना जाता है। इस कुंड की सैर का सबसे अच्छा समय मानसून के दौरान होता है क्योंकि इस दौरान कुंड में पानी काफी मात्रा में होता है और भरा हुआ कुंड शहर से थके हारे आने के बाद आंखों को सुखद माहौल प्रदान करता है।
शिवपुरी की छतरियां शाही सिंधिया परिवार से जुड़ी हुई हैं। ये एक खाली कब्र हैं जो उस व्यक्ति के लिए बनी हुई है जो कहीं न कहीं विद्यमान है। स्मारक, युद्ध स्मारकों की तर्ज पर बनाया गया है यह एक आधुनिक तरीका नहीं बल्कि काफी पुराना प्रचलन है। स्मारक के अंग्रेजी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द से हुई है जिसका अर्थ मृतकों के सम्मान व इतिहास से जुड़े साधन के रूप में होता है। यहां स्थित छतरियां न केवल उनके इतिहास के लिए जानी जाती है बल्कि उनकी कला व स्थापत्य के लिए भी उल्लेखनीय है। शिवपुरी की छतरियां, संगमरमर से बनी हुई है जिन पर बेदाग कला के चिन्ह् आज भी देखने को मिलते है। यह छतरियां वर्तमान में भी सही ढंग से बनी हुई है जिससे साफ पता चलता है कि इनका रखरखाव अच्छे से किया जाता है। इन छतरियों के पास में ही एक बड़ा सा मुगल उद्यान भी स्थित है वहीं दूसरी तरफ एक झील भी स्थित है जो देखने में बेहद सुंदर है और काफी बड़ी भी है। यहां सिंधिया शाही परिवार के सदस्यों को समर्पित मूर्तियां भी लगी हुई है। यहां स्थित छतरी विशेष रूप से माधवराव सिंधिया और उनकी तत्कालीन विधवा महारानी सख्या राजे सिंधिया को समर्पित है।